सन्निहित तीर्थ की गणना कुरुक्षेत्र के 48 कोस के प्रमुख तीर्थ में की जाती है ।
सन्निहित का अर्थ होता है एकत्र होना अथवा समाना ।
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रत्येक अमावस्या व सूर्य ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी के सारे तीर्थ इस सरोवर के जल में एकत्र हो जाते हैं ।
इसे सात सरस्वतीयो का संगम भी कहा जाता है ।
इस सरोवर में ब्रह्मा विष्णु व शिव का वास कहा जाता है ।
वामन पुराण के अनुसार यह तीर्थ रंतुक से लेकर ओजस तक, पावत से चतुर्मुख तक विस्तृत था । धीरे-धीरे इस तीर्थ के आकार में परिवर्तन होता रहा वर्तमान में इस तीर्थ की लंबाई 1500 फुट तथा चौड़ाई 550 फुट है ।
इस सरोवर में लाल रंग के पत्थर से निर्मित सुंदर सीढ़ियां तथा सरोवर के चारों ओर चबूतरे का निर्माण किया गया है तथा पक्के घाट भी बनाए गए हैं ।
इस सरोवर के तट पर ध्रुव नारायण मंदिर, भगवान चतुर्भुज नारायण मंदिर, हनुमान मंदिर, दुर्गा मंदिर एवं दुख भंजन मंदिर स्थापित हैं ।
कहा जाता है कि इसी स्थान पर महर्षि दधीचि ने इंद्र की याचना पर अपनी अस्थियों का दान किया था जिस से निर्मित वज्र द्वारा इंद्र ने वृतासुर का वध किया था ।
ऐसा भी कहा जाता है कि यहां पर महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने सभी दिव्यांग की मुक्ति के लिए इसी स्थान पर पिंडदान एवं श्राद्ध किया था ।
इस तीर्थ में अमावस्या के दिन, सूर्य ग्रहण के समय जो अपने पूर्वजों का श्राद्ध करता है उसे हजारों अश्वामेध यज्ञो का फल मिलता है ।
और जो एक ब्राह्मण को श्रद्धा पूर्वक भोजन कराते हैं उसे करोड़ों व्यक्तियों के भोजन कराने का फल मिलता है ।
इस तीर्थ पर पूर्वजों हेतु पिंडदान एवं श्राद्ध की प्राचीन परंपरा रही है देश-विदेश के अनेक भागों से आए श्रद्धालु अपने पूर्वजों का श्राद्ध एवं पिंडदान करते हैं
जिसका उल्लेख तीर्थ पुरोहितों की भाहियो में मिलता है ।
तीर्थ परिसर में स्थापित ब्रिटिश कालीन अभिलेख इस सरोवर की पवित्रता एवं महत्व
को और बढ़ा देते हैं ।
इस सरोवर के समीप नगर शैली से निर्मित लक्ष्मी नारायण मंदिर तथा नाभा राज परिवार द्वारा निर्मित नाभा हाउस भी दर्शनीय स्थल है ।